ई जो लाल गमछे में लाल बादशाह बने दिख रहे है ये है हम बोले तो अभिषेक कुमार दुबे "AD" जन्म 1991 में फैज़ाबाद से 26 किलोमीटर दूर ग्राम टड़िया नंदलाल दुबे के पुरवा में हुआ । ग्राम के नाम से ही लग रहा होगा कि नंद के लाल से कम नही होंगे लेकिन सच्चाई तो सदैव कड़वी होती है ।
जन्म और कर्म दोनो भिन्न होता है और हुआ भी ये ही ।

बड़ा शौक चढ़ा दिल्ली रहने का और चले आये दिल्ली, 4 साल की उम्र से अभी तक दिल्ली में रह रहा हूँ सारी पढ़ाई दिल्ली से करी जितनी हो सकी बाकी राम भरोसे । सन था 2010 नाम और काम दोनो मे कम्प्यूटर बड़ा नाम था इसलिए कम्प्यूटर सीखने का चस्का चढ़ा फिर क्या था चल पड़ा अपनी झंड जिंदगी के पहली सीढ़ी की खोज में अब कोर्स भी जैसे तैसे पूरा हुआ नॉकरी की तलाश शुरू हुई लेकिन ये क्या गज़ब चल पड़ा सब नॉकरी मिलती रही और जाती रही बचाया कुछ नही सब उड़ाया ही उड़ाया और आज बेरोजगारी की चरम सीमा पर पहुच गया बाहर कोरोना से जान को खतरा है तो घर मे बोली के बाण से । लेकिन कर कुछ नही सकते क्योंकि कमी कुछ नही बस एक है बेरोजगार होना लेकिन ये शुरू से ही ऐसा नही था जिंदगी मस्त चल रही थी लेकिन कहते है न काल से तो प्रभु राम भी नही बच पाए तो भैया हमारी क्या औकात समय कुछ ऐसा आया कि नॉकरी छोड़नी पड़ी महीने बीते साल बीते खाली था लेकिन लगता था बहुत काम करना पड़ता है पर सच्चाई से मुंह नही छिपाया जा सकता इसलिए नॉकरी ढूंढ रहा था मिली भी लेकिन समय खराब हो तो ऊंट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है अब कुछ ऐसा हो मेरे साथ हो रहा है बात बनी तो दिल्ली में दंगे हो गए चलो कोई नही दूसरी नॉकरी का जुगाड़ किया ऑफर लेटर भी आया लेकिन कहते है न जब ऊपर वाला पेलता है तो अब तरफ से ही पेलता है 23 तारीख के दिन ही मेरी 1 साल से ज्यादा की जिंदगी पर लगा बेरोजगारी का तमगा हटने ही वाला था कि साला चाइना का कोरोना काल बन गया और जो हाल पहले था वो ही आज है
मैं कल भी बेरोजगार था और आज भी बेरोजगार हूँ ।
माफ करना ऊपर कुछ शब्दों में आपको आपत्ति हो सकती ले लेकिन क्या करूँ शब्द तो और भी थे लेकिन दिल गवाही नही दिया लिखने में ।
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